बुधवार, 15 दिसंबर 2010

लोग जुड़ते गये ..कारवां बढ़ता गया .. और आज यह कुम्भ के स्वरूप में हमारे सामने है ...

दिव्या जी की फरमाईश पर इस संस्मरण सहित प्रस्तुत है शांति दे माँ नर्मदे !
वर्ष १९९२ ...विद्युत मण्डल मण्डला में मैं ,भाई  अवधेश दुबे ,व  राजेंद्र सिंग तथा नगर से प्रो अरविंद गुरू संयोग से हम लोगो की एक साहित्यिक टीम बनी ...रेवा सांस्कृतिक केंद्र
पंडित अशोक दुबे "गुरूजी " के आशीर्वाद से नर्मदा जंयती को समारोह पूर्वक मनाने का सुयोग हुआ . माहिष्मती महोत्सव का नाम दिया था हम लोगो ने उस ३ दिवसीय समारोह को ...
पिताजी प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी का निम्न गीत जो माँ नर्मदा की भौगोलिक , ऐतिहासिक ,वैज्ञानिक आदि विभिन्न पृष्ठभुमि पर प्रकाश डालता एक अद्भुत समवेत गान है ,  रेवा सांस्कृतिक केंद्र का कुल गीत निर्धारित हुआ . व गीत की आध्यात्मिक पंक्तियां "शांति दे माँ नर्मदे ! " आयोजन के मोनो के नीचे लिखे जाने हेतु तय किया गया ... गीत की धुन श्री सूरज प्रसाद चौरसिया जी ने बनाई , , लायंस क्लब मण्डला ने गीत का आडियो कैसेट बनाया ..
नगर की बिटियो ने बहुत ही मनोहारी कत्थक नृत्य इस गीत पर तैयार किया , जिसे रंगरेज घाट की सीढ़ीयों पर प्रस्तुत किया गया ....
नर्मदा भक्तो ने माँ नर्मदा के संपूर्ण पाट की लम्बाई की चुनरी चढ़ाई ... जिस पर मेरा लेख बाद में कादम्बिनी पर भी प्रकाशित हुआ था . सब कुछ जेसे माँ नर्मदा ही करवा रही थी ... फिर तो हर वर्ष लोग जुरते गये ..कारवां बढ़ता गया .. और आज यह कुम्भ के स्वरूप में हमारे सामने है ...
तब मैनें नर्मदा पर डाकटिकिट की मांग भी केंद्र सरकार से की थी ...
अस्तु ! दिव्या जी की फरमाईश पर इस संस्मरण सहित प्रस्तुत है शांति दे माँ नर्मदे !






प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध"

मो ९४२५४८४४५२

सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे
सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे
सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते
कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे ! शांति दे माँ नर्मदे !


हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से
जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से
सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से
जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से ! शांति दे माँ नर्मदे !


पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से
काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से
तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से
संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के
जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के
वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी
सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी  ! शांति दे माँ नर्मदे !


हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से
यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से
पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है
माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है  ! शांति दे माँ नर्मदे !


सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी
प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी
पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से
पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से  ! शांति दे माँ नर्मदे !


हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती
संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती
तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे
शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे  ! शांति दे माँ नर्मदे !


तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा
जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा
सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे
कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !  ! शांति दे माँ नर्मदे !

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