रविवार, 19 दिसंबर 2010

महाकुंभ होगा .. लाखों लोग आयेंगे .. पालिथिन की ढ़ेरो पन्नियां , पैकेट , खाली डिस्पोजेल ग्लास , आदि का प्रदूषण होगा ..

मण्डला में नर्मदा जयंती के अवसर पर फरवरी २०११ में ३ दिवसीय महाकुंभ होगा .. लाखों लोग आयेंगे .. पालिथिन की ढ़ेरो पन्नियां , पैकेट , खाली डिस्पोजेल ग्लास , आदि का प्रदूषण होगा .. अभी समय है कि इस मुद्दे पर राय बनाई जाये ..कार्यवाही की जावे .. बाद में लकीर पीटने से कुछ नही होगा .
मण्डला की सरिता अग्नहोत्री जी ने उच्चन्यायालय सेपालिथिन के नियंत्रित उपयोग पर जनहित याचिका में फैसला भी प्राप्त किया था ...
फेसबुक पर हम मण्डला ग्रुप के सभी सदस्य मेरी इस पोस्ट पर कम से कम एक वाक्य में हिन्दी या अंग्रेजी में अपने विचार ..कुछ न कुछ जरूर लिखें ... पसंद करें ... वैचारिक अभियान से ही जन अभियान बनते हैं ...

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

आरती से महाआरती , भोज महाभोज , उत्सव महोत्सव में बदल रहे हैं .

मण्डला एक धार्मिक नगरी के रूप में ख्याति लब्ध होता जा रहा है ..
पिछले वर्षों में धर्म व्यक्तिगत साधना से बढ़कर सार्वजनिक प्रदर्शन , सामूहिक एकजुटता से शक्तिप्रदर्शन का स्वरूप लेता भी  दिख रहा है .. जाने कितना अच्छा कितना बेहतर है यह देश और समाज के लिये ...
सार्वजनिक होने से आरती से महाआरती , भोज महाभोज , उत्सव महोत्सव में बदल रहे हैं ....
कल मण्डला में ५००१ सुहागिन महिलायें सामूहिक रुप से आयोजित सुहगलों के महाकार्यक्रम में शामिल होंगी ....
एक और महा प्रयोग .......

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

लोग जुड़ते गये ..कारवां बढ़ता गया .. और आज यह कुम्भ के स्वरूप में हमारे सामने है ...

दिव्या जी की फरमाईश पर इस संस्मरण सहित प्रस्तुत है शांति दे माँ नर्मदे !
वर्ष १९९२ ...विद्युत मण्डल मण्डला में मैं ,भाई  अवधेश दुबे ,व  राजेंद्र सिंग तथा नगर से प्रो अरविंद गुरू संयोग से हम लोगो की एक साहित्यिक टीम बनी ...रेवा सांस्कृतिक केंद्र
पंडित अशोक दुबे "गुरूजी " के आशीर्वाद से नर्मदा जंयती को समारोह पूर्वक मनाने का सुयोग हुआ . माहिष्मती महोत्सव का नाम दिया था हम लोगो ने उस ३ दिवसीय समारोह को ...
पिताजी प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध जी का निम्न गीत जो माँ नर्मदा की भौगोलिक , ऐतिहासिक ,वैज्ञानिक आदि विभिन्न पृष्ठभुमि पर प्रकाश डालता एक अद्भुत समवेत गान है ,  रेवा सांस्कृतिक केंद्र का कुल गीत निर्धारित हुआ . व गीत की आध्यात्मिक पंक्तियां "शांति दे माँ नर्मदे ! " आयोजन के मोनो के नीचे लिखे जाने हेतु तय किया गया ... गीत की धुन श्री सूरज प्रसाद चौरसिया जी ने बनाई , , लायंस क्लब मण्डला ने गीत का आडियो कैसेट बनाया ..
नगर की बिटियो ने बहुत ही मनोहारी कत्थक नृत्य इस गीत पर तैयार किया , जिसे रंगरेज घाट की सीढ़ीयों पर प्रस्तुत किया गया ....
नर्मदा भक्तो ने माँ नर्मदा के संपूर्ण पाट की लम्बाई की चुनरी चढ़ाई ... जिस पर मेरा लेख बाद में कादम्बिनी पर भी प्रकाशित हुआ था . सब कुछ जेसे माँ नर्मदा ही करवा रही थी ... फिर तो हर वर्ष लोग जुरते गये ..कारवां बढ़ता गया .. और आज यह कुम्भ के स्वरूप में हमारे सामने है ...
तब मैनें नर्मदा पर डाकटिकिट की मांग भी केंद्र सरकार से की थी ...
अस्तु ! दिव्या जी की फरमाईश पर इस संस्मरण सहित प्रस्तुत है शांति दे माँ नर्मदे !






प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध"

मो ९४२५४८४४५२

सदा नीरा मधुर तोया पुण्य सलिले सुखप्रदे
सतत वाहिनी तीव्र धाविनि मनो हारिणि हर्षदे
सुरम्या वनवासिनी सन्यासिनी मेकलसुते
कलकलनिनादिनि दुखनिवारिणि शांति दे माँ नर्मदे ! शांति दे माँ नर्मदे !


हुआ रेवाखण्ड पावन माँ तुम्हारी धार से
जहाँ की महिमा अमित अनुपम सकल संसार से
सीचतीं इसको तुम्ही माँ स्नेहमय रसधार से
जी रहे हैं लोग लाखों बस तुम्हारे प्यार से ! शांति दे माँ नर्मदे !


पर्वतो की घाटियो से सघन वन स्थान से
काले कड़े पाषाण की अधिकांशतः चट्टान से
तुम बनाती मार्ग अपना सुगम विविध प्रकार से
संकीर्ण या विस्तीर्ण या कि प्रपात या बहुधार से ! शांति दे माँ नर्मदे !

तट तुम्हारे वन सघन सागौन के या साल के
जो कि हैं भण्डार वन सम्पत्ति विविध विशाल के
वन्य कोल किरात पशु पक्षी तपस्वी संयमी
सभी रहते साथ हिलमिल ऋषि मुनि व परिश्रमी  ! शांति दे माँ नर्मदे !


हरे खेत कछार वन माँ तुम्हारे वरदान से
यह तपस्या भूमि चर्चित फलद गुणप्रद ज्ञान से
पूज्य शिव सा तट तुम्हारे पड़ा हर पाषाण है
माँ तुम्हारी तरंगो में तरंगित कल्याण है  ! शांति दे माँ नर्मदे !


सतपुड़ा की शक्ति तुम माँ विन्ध्य की तुम स्वामिनी
प्राण इस भूभाग की अन्नपूर्णा सन्मानिनी
पापहर दर्शन तुम्हारे पुण्य तव जलपान से
पावनी गंगा भी पावन माँ तेरे स्नान से  ! शांति दे माँ नर्मदे !


हर व्रती जो करे मन से माँ तुम्हारी आरती
संरक्षिका उसकी तुम्ही तुम उसे पार उतारती
तुम हो एक वरदान रेवाखण्ड को हे शर्मदे
शुभदायिनी पथदर्शिके युग वंदिते माँ नर्मदे  ! शांति दे माँ नर्मदे !


तुम हो सनातन माँ पुरातन तुम्हारी पावन कथा
जिसने दिया युगबोध जीवन को नया एक सर्वथा
सतत पूज्या हरितसलिले मकरवाहिनी नर्मदे
कल्याणदायिनि वत्सले ! माँ नर्मदे ! माँ नर्मदे !  ! शांति दे माँ नर्मदे !

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

दर्शन भर से पायें सुदर्शन

नीर नर्मदा का मधु है !

विवेक रंजन श्रीवास्तव
Jabalpur (M.P.) 482008
 009425484452
ई मेल vivek1959@yahoo.co.in

नीर नर्मदा का मधु है !
साधू है हर पीने वाला !
आसक्त न हो भौतिकता का !
मैया तट पर रहने वाला !

मैया का गहना ये वन है !
वनवासी है जीवट वाला !
अपने में परिपूरित जीवन !
संतुष्ट सुखी और मतवाला !

आभूषण पाषाणों के माँ के!
कापू का कछार है फलवाला!
उन सबका जीवन धन्य हुआ!
जिनको गोदी माँ ने पाला !

डुबकी से इक संताप मुक्त हो !
पथिक क्लांत आने वाला !
कल कल बहता नीर निर्मला!
आतृप्त अँजुरी पीने वाला!

समरस सबको करती पोषित!
रेवा माँ ने सबको पाला!
मैया चरणों पर साथ झुकें !
राजा फकीर बालक बाला !

कण कण शंकर बन आप्लावित!
ऐसा मंदिर हैं माँ रेवा !
दर्शन भर से पायें सुदर्शन  !
अद्भुत अमृत जीवन रेखा !

रविवार, 5 दिसंबर 2010

साधना है कला.... मण्डला के डॉ. अग्निहोत्री

साधना है कला....मण्डला के डॉ. अग्निहोत्री


कला साधना है, तपस्या है, जो परिश्रम और एकाग्रता से प्राप्त होती है। यह कहना है पेशे से चिकित्सक लेकिन अपनी कला के बल पर राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को प्रभावित कर चुके ७६ वर्षीय डॉ. एके अग्निहोत्री का। जिन्होंने चिकित्सक जैसे मानवीय एवं कठिन पेशे के साथ-साथ तूलिका और रंग के संग फुर्सत के पलों में अपनी मानवीय संवेदनाओं को कैनवास में एक मूर्तरूप प्रदान किया तथा उनकी यह रंगीन यात्रा आज भी जारी है।
चित्रकारी के अपने इस शौक का जिक्र करते हुए डॉ. अग्निहोत्री ने बताया कि मुझे चित्रकारी करने का शौक बचपन से ही था और खाली वक्त में मैं रंगों के संग ही अपना समय बिताया करता था, यह शौक कब मेरे दिल की गहराई में बसता चला गया, इसका मुझे एहसास ही नहीं हुआ। क्रेयान पाउडर से मैंने अपनी पहली पेंटिंग सन्‌ १९५६ में मोर की बनाई थी, जिसके बाद मेरी चित्रकारी को एक नई दिशा मिली और मैंने टाइगर हिल्स, मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, हरिवंश राय बच्चन एवं अमिताभ बच्चन जैसी कई महान हस्तियों के चित्र अपने कैनवास में उकेरे। अपने सबसे यादगार पलों के बारे में बताते हुए डॉ. अग्निहोत्री ने बताया कि मुझे सबसे ज्यादा खुशी तब हुई थी जब ३ जून २००३ को राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति भवन में मुझे उन पर बनाये हुए पोट्रेट के लिये सम्मानित किया था और मेरी कला की तारीफ की थी।
१० दिन से २ साल तक
अपने चित्रों के विषय में जानकारी देते हुए डॉ. अग्निहोत्री ने बताया कि चित्रकारी धैर्यता से किया जाने वाला कार्य है और मुझे एक चित्र को बनाने में औसतन डे़ढ़ से दो साल तक का समय लग जाता है। चित्रकारी के साथ-साथ खेलों में रुचि रखने वाले डॉ. अग्निहोत्री का पसंदीदा खेल हॉकी है, जिसके लिये उन्होंने राज्य स्तर पर कई पुरस्कार भी प्राप्त किये हैं।
पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी और राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर से अपने चित्रों के लिए सम्मान प्राप्त कर चुके डॉ. विष्णु अग्निहोत्री को सामान्य जन-जीवन एवं प्राकृतिक सुंदरता को कैनवास में उकेरना बहुत पसंद है। कुछ चित्रों को जहां डॉ. अग्निहोत्री ने तूलिका से संवारा है, तो वहीं कुछ चित्रों में उन्होंने चाकू के माध्यम से नाइफ पेंटिंग के द्वारा रंग भरे हैं। डॉ. अग्निहोत्री का मानना है कि चित्रों से लोगों का गहरा नाता होता है, वह लोगों के दिल को छूते हैं।अवसर था रोटरी क्लब, रॉक सिटी एवं इंटर नेशनल डिस्ट्रिक-३२६० के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सामूहिक चित्रकला प्रदर्शनी का। प्रदर्शनी में चित्रकार डॉ. एके अग्निहोत्री, डॉ. विष्णु अग्निहोत्री एवं संगीता विश्वकर्मा के चित्र प्रदर्शन हेतु रख गए हैं।
दो दिवसीय प्रदर्शनी का उद्घाटन इन्कम टैक्स कमिश्नर पीसीके सालोमन ने रिबन काटकर एवं दीप प्रज्जवलन कर किया। इस अवसर पर श्री सालोमन ने प्रदर्शनी में रखे चित्रों की तारीफ करते हुए कहा कि हिन्दुस्तान के कोने-कोने में इन चित्रकारों की कला को पहुंचाया जाना चाहिए और आयोजकों द्वारा किये गए इस प्रयास के लिए मैं उन्हें बधाई देता हूं।
ममत्व से अभिशप्त तक
गोद में बच्चे को लिए काम की तलाश में घूमती मजदूर महिला, आकाश में अपनी प्रेमिका की छवि को तलाशता अनाम प्रेमी, भूली-बिसरी यादों में खोयी युवती, आदिवासी क्षेत्र का एक गरीब किसान, आतंक से डरी हुई निगाहें, जैसे कई मानवीय संवेदनाओं के साथ कई महान हस्तियों के स्क्रेच डॉ. एके अग्निहोत्री द्वारा प्रदर्शनी में रखे गये चित्रों में शामिल थे। प्रदर्शनी में डॉ. अग्निहोत्री द्वारा बनाये गये लगभग ३५ चित्र प्रदर्शन हेतु रखे गये

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

आखिर वास्तविक माहिष्मती कहाँ थी ...वर्तमान मण्डला में , महेश्वर में या कही अन्यत्र ??

अपने अतीत के गौरव को समेटने की हमारी प्रवृति , इतिहास को भी अपने पक्ष में करने की राजनीति को जन्म देती है . माहिष्मती अर्वाचीन नगरी थी , जिसके पुरातन साक्ष्य खुदाई से व अर्कालाजिकल प्रमाणो से विशेषज्ञो द्वारा ही निकाले जा सकते हैं . कालिदास साहित्य में वर्णित श्लोक है , जिसके अनुसार माहिष्मती नगरी को नर्मदा नदी तीन ओर से कर्धनी के रूप में घेरे हुये थी . यह भौतिक साक्ष्य आज भी मण्डला के साथ है , महेश्वर में ऐसा नही है . किन्तु फिर भी वहां के लोग उसे माहिष्मती मानते हैं . मण्डला के लोग मण्डला को माहिष्मती मानते हैं . मण्डला में अनेक संस्थानो के नाम माहिष्मती पर हैं . मण्डला में माहिष्मती शोध संस्थान भी है . स्वयं जगतगुरू शंकराचार्य ने मण्डला को माहिष्मती कहा है . किन्तु यह अभी भी विवाद व शोध का विषय है कि आखिर वास्तविक माहिष्मती कहाँ थी ...वर्तमान मण्डला में , महेश्वर में या कही अन्यत्र ?? निवेदन है कि यदि इतिहासज्ञ इस आलेख को पढ़ें तो कृपया अपने अभिमत अवश्य दें .  

अब फ्रांस को धन्यवाद कहते हुए वापस लौट जाना चाहता हूँ ......मशहूर पेंटर सैयद हैदर रज़ा

मैं मूलतः मण्डला का हूं , मण्डला ही मेरी जन्म स्थली है , अपनी माटी से लगाव स्वाभाविक है , मुझे गर्व हुआ जब मैने यूं ही सर्फिंग करते हुये बीबीसी पर मेरे पिता जी के स्कूल के दिनों के दो एक वर्ष आगे के साथी अब फ्रांस में रह रहे मशहूर पेंटर सैयद हैदर रज़ा का इंटरव्यू पढ़ा ... और यह पढ़ा कि वे इस उम्र में स्वदेश लौटने की इच्छा रखते हैं .. अपनी माटी से प्रेम का यह उदाहरण मुझे अंतस तक छू गया , सोचा क्यों न आप सबके लिये यह इंटरव्यू उधृत करूं ...

मशहूर भारतीय पेंटर सैयद हैदर रज़ा
पेंटर एम एफ हुसैन जहाँ भारत को छोड़कर क़तर की नागरिकता ले चुके हैं, वहीं रज़ा 88 साल की उम्र में बाक़ी जीवन गुज़ारने के लिए भारत लौटना चाहते हैं,कुछ समय पहले जब लंदन के नीलामीघर क्रिस्टीज़ ने रज़ा की पेंटिंग 'सौराष्ट्र' की नीलामी 16 करोड़ रुपए में की तो वे भारत के सबसे महँगे कलाकार के रूप में चर्चा में आए.
1922 में मध्य प्रदेश में दमोह ज़िले में बावरिया गाँव में जन्मे रज़ा को इंटरव्यू के लिए राज़ी करना कठिन काम था क्योंकि वे इसे 'समय की बर्बादी और डिस्ट्रैक्शन' मानते हैं.
पेरिस के उनके घर पर बीबीसी हिंदी के राजेश प्रियदर्शी ने उनसे लंबी बातचीत की, बिना अँगरेज़ी की मिलावट किए रज़ा ने शुद्ध हिंदी में अपनी कला यात्रा पर बात की.
आपने इस वर्ष के अंत में सब कुछ समेटकर हमेशा के लिए भारत जाने की घोषणा करके सबको चौंका दिया है, क्या वजह है इस निर्णय की-
भारत जाने से ही बहुत आनंद मुझे मिलेगा. इस सुख का मैं वर्णन भी नहीं कर सकता. यह वही भारतीय जान सकता है जिसे अपने देश से प्रेम हो. मेरी पत्नी जेनिन मोनज़िला का देहांत हो चुका है 2002 में, मैं अकेला हूँ, मेरी कोई संतान नहीं है. मैं अब चाहता हूँ कि अपने देश आ सकूँ, जो समय मेरे पास बचा है वो अपने देश में बिता सकूँ, मंदिरों में जा सकूँ, मस्जिदों में जा सकूँ, गिरिजाघर में जा सकूँ, मित्रों से मिलकर हिंदी में बात हो सके, संस्कृत के श्लोक सुन सकूँ.
इस निर्णय तक पहुँचने में आपको इतना समय क्यों लगा, पहले क्यों नहीं जा सके भारत?
मेरी पत्नी जेनिन अपने परिवार में इकलौती बेटी थीं और उनके माता पिता ने मुझसे अनुरोध किया कि अगर मैं पेरिस में रह सकूँ तो अच्छा होगा. मुझे फ्रांस शुरू से बहुत पसंद है, यहाँ काम करने की बहुत सुविधा थी इसलिए यहाँ रह गया क्योंकि मेरे लिए चित्र बनाना सबसे बड़ी बात थी. मैं यहाँ रहा मगर देश से संबंध हमेशा बना रहा, हिंदी बोलता रहा, हिंदी पुस्तकें पढ़ता रहा, देश के मित्र आते रहे, मैं भारत जाता रहा, देश को कभी भूला नहीं, हाँ दूर ज़रूर था लेकिन मेरा विश्वास है कि मैंने अपने देश को कभी छोड़ा ही नहीं, जैसे मैं हमेशा वहीं रहा हूँ, इसीलिए मैंने अपना भारतीय पासपोर्ट साठ साल बाद भी बनाए रखा है. अब फ्रांस को धन्यवाद कहते हुए वापस लौट जाना चाहता हूँ ताकि उसी धरती को चूम सकूँ जहाँ मैं पैदा हुआ हूँ.
भारत की वो कौन-सी यादें हैं जिन्हें साठ साल तक पेरिस में रहने के बाद भी आप नहीं भूल पाए हैं?
हम मंडला में रहते थे, बहुत सुंदर जगह थी. जानवर, पंछी, मंदिर, नदियाँ, पहाड़, जंगल सब कुछ बहुत सुंदर था. मैं बहुत ही मामूली विद्यार्थी था, पढ़ाई में दिल नहीं लगता था, ईश्वर की कृपा से मुझे बहुत अच्छे शिक्षक मिल गए जिन्होंने पहचाना कि मैं चित्रकला में कुछ कर सकूँगा तो उन्होंने कहा कि मुझे आर्ट की शिक्षा दिलानी चाहिए. मैं मंडला वापस जाना चाहता हूँ क्योंकि वहाँ बहुत सुंदर यादें हैं जिन्हें मैं वापस जगाना चाहता हूँ.

आप इतने समय तक पेरिस में रहने के बाद एक अलग तरह के जीवन के आदी हो गए हैं, क्या अब आप भारत में रह पाएँगे?
यहाँ की जो आदतें हैं उनकी बात दूसरी है लेकिन मैं वहाँ की आदतों को अपना लूँगा, वहाँ जिस तरह रहना चाहिए उसी तरह रहूँगा. मैं हिंदी भाषा अच्छी तरह बोल सकता हूँ, अपने गाँव के लोगों से भी उनकी बोली में बात कर सकता हूँ, उनसे कह सकता हूँ--'काए भइया कहाँ जात हौ'.. मज़ा आ जाएगा.
क्या भारत जाने पर आपको फ्रांस याद नहीं आएगा जहाँ आपके जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा गुज़रा है?
फ्रांस ज़रूर याद आएगा लेकिन अपना देश तो अपना देश है, उससे हमारा आत्मा और शरीर का जो संबंध है वो दूसरा होता है. फ्रांस को कभी नहीं भूल सकता, चित्रकला में पहचान तो फ्रांस ने ही दी.
आपने 1950 के दशक में फ्रांस आने का फ़ैसला कैसे किया?
फ्रांसीसी चित्रकला मुझे हमेशा से बहुत अच्छी लगती रही है. मैंने फ्रांसीसी चित्र किताबों में, रिप्रॉडक्शन में देखे. मैंने तय कर लिया कि अगर मैं कभी विदेश गया तो फ्रांस ही जाऊँगा. मुंबई में फ्रेंच कान्सुलेट में मेरे दोस्त थे जो मेरे चित्र पसंद करते थे उन्होंने कहा कि अगर मैं फ्रेंच सीख लूँ तो मुझे वहाँ स्कॉलरशिप मिल सकती है, मैंने दो साल तक फ्रेंच सीखी और पेरिस आ गया. मुझे यहाँ आते ही फ्रांस से लगाव हो गया, मैंने यहाँ बीस-तीस साल तक बहुत ख़ामोशी से, एकांत में, धैर्य से काम किया.
आपकी शुरूआत की पेंटिंगों में पेरिस का जीवन दिखाई देता है लेकिन उसके बाद अचानक आपकी चित्रकला में सारे प्रतीक, सारे चिन्ह, सारे मुहावरे भारतीय हो जाते हैं, ऐसा कब हुआ और कैसे हुआ?
ये 1978 की बात है, मैंने अपने आपसे कहा कि ऐसे नहीं चलेगा. मैंने ख़ुद से पूछा, रज़ा, तुम्हारी चित्रकला में तुम्हारा देश कहाँ है? देश के विचार कहाँ हैं? मैंने तभी से देश के विचार ढूँढना शुरू किए, यंत्रा, मंत्रा, बिंदु, कुंडलिनी वग़ैरह उसी के बाद मेरे चित्रों में आए, ईश्वर की कृपा से ऐसा हो सके, और देखिए कि यह फ्रांस में हुआ.
आपकी पेंटिंग सौराष्ट्र सोलह करोड़ रुपए में बिकी है, आपको कैसा लगता है?
देखिए जब मुझे समाचार मिला तो मुझे खुशी हुई, मुझे अच्छा लगता है कि मेरे चित्रों को इतना मान दिया जा रहा है. मैं तो एक ग़रीब चित्रकार की तरह काम करता रहा हूँ और करता ही रहूँगा. पैसे की मुझे कभी कोई चिंता नहीं रही है.

आपको पहचान मिलने में काफ़ी समय लगा, क्या इसकी वजह ये तो नहीं रही कि आप विवादों से हमेशा दूर रहे?
हाँ, समय तो बहुत लगा, मेरा जीवन काफ़ी कठोर रहा है, पैसे की काफ़ी तकलीफ़ रही है, लेकिन मैं तो इसके बारे में सोचता भी नहीं, मेरा अपना स्वभाव है और मैं अपने स्वभाव के हिसाब से काम करता हूँ. क्या मिला, क्या नहीं, देर से मिला या समय पर मिल गया, इन सबके बदले मैं यही सोचता हूँ कि मैं कुछ काम कर पाया हूँ जो लोगों को पसंद आ रहा है, यही बहुत है.
एक पेंटर के रूप में आपका दिन किस तरह गुज़रता है?
मैं कभी-कभी रात भर नहीं सोता, कभी-कभी दिन भर सोता रहता हूँ, कभी ग्यारह-बारह बजे तक नींद आ जाती है, पिछले दिनों काफ़ी देर देर तक नींद नहीं आती थी, पेंटिंग बनाता रहता हूँ, कोई ख़ास समय नहीं है पेंटिंग बनाने का. पिछले एक महीने से काफ़ी थकान थी, क्या किया जाए, 88 साल की उम्र में शरीर की तकलीफ़ें तो होती ही हैं. ईश्वर की कृपा है कि इतनी उम्र मिली, इच्छा यही है कि आगे भी काम कर सकूँ.
इस समय चर्चा ये हो रही है कि आप भारत के सबसे महँगे पेंटर हैं लेकिन आप क्या चाहते हैं कि लोग आपको किस तरह याद रखें?
पैसे के बारे में बात करना मुझे बहुत बेकार लगता है. अगर पैसे की वजह से लोग समझें कि मैं चित्रकार हूँ तो यह बेकार बात है. मैं मानता हूँ कि चित्रों का अपना एक अर्थ होता है उसको समझना चाहिए और उसे ही देखना चाहिए. जिस तरह एक सुंदर स्त्री एक पुरुष के पीछे नहीं भागती बल्कि उसका प्रेमी ही उसके पास आता है, इसी तरह कलाकार को यह नहीं देखना चाहिए कि मेरी पेंटिंग कौन ख़रीदेगा, कितने पैसे मिलेंगे, बल्कि अपना सारा ध्यान अपनी कला पर केंद्रित करना चाहिए, कला प्रेमी ख़ुद-ब-ख़ुद आ जाते हैं.

विश्व में नर्मदा ही वह नदी है जिसकी प्रदक्षिणा की परम्परा है।

मण्डला में आपका हार्दिक स्वागत है .....नर्मदा मध्य भारत के मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। अमृतमयी पुण्य सलिला नर्मदा की गणना देश की प्रमुख नदियों में की जाती है। पवित्रता में इसका स्थान गंगा के तुरन्त बाद है कहा जो यह जाता है कि गंगा में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह नर्मदा के दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।
विश्व में नर्मदा ही वह नदी है जिसकी
स्कंद पुराण में कहा गया है कि
पुराणों में नर्मदा को शंकर जी की पुत्री कहा गया है
प्रदक्षिणा की परम्परा है।त्रिभिः सारस्वतं पुण्यं समाहेन तु यामुनम्‌। साद्यः पुनाति गांगेयं दर्शनादेव नर्मदा॥यानी संसार में सरस्वती का जल 3 दिन में, यमुना का जल 7 दिन में तथा गंगा मात्र स्नान से जीव को पवित्र कर देती है, किंतु नर्मदा जल के दर्शन मात्र से जीव सभी पापों से मुक्त हो जाता है। पतित पावनी माँ नर्मदा की महिमा अनंत है। पुण्यसलिला माँ नर्मदा, माता गंगा से भी प्राचीन है।, इसका प्रत्येक कंकर शंकर माना जाता है।भगवान शिव की इला नामक कला ही नर्मदा है। आदि सतयुग में शिवजी समस्त प्राणियों से अदृश्य होकर
मैं संसार में दक्षिणगंगा के नाम से देवता‌ओं से पूजित हो‌ऊँ। पृथ्वी के सभी तीर्थों के स्नान का जो फल होता है वह भक्तिपूर्वक मेरे दर्शनमात्र से हो जा‌ए। ब्रह्महत्या जैसे पापी भी मुझमें स्नान करने से पापमुक्त हो जा‌एँ।
10 हजार वर्षों तक ऋष्य पर्वत विंध्याचल पर तपस्या करते रहे। उसी समय शिव-पार्वती परिहास से उत्पन्न पसीने की बूँदों से एक परम सुंदरी कन्या उत्पन्न हो ग‌ई। उस कन्या ने सतयुग में 10 हजार वर्ष तक भगवान शंकर का तप किया। भगवान शंकर ने तपस्या से प्रसन्न होकर कन्या को दर्शन देकर वर माँगने हेतु कहा। कन्या (श्री नर्मदाजी) ने हाथ जोड़कर भगवान शंकर से वर माँगते हु‌ए कहा- ’मैं प्रलयकाल में भी अक्षय बनी रहूँ तथा मुझमें स्नान करने से सभी श्रद्धालु पापों से मुक्त हो जा‌एँ।भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर कहा- ’हे कल्याणी पुत्री! जैसा वरदान तूने माँगा है, वैसा ही होगा और सभी देवता‌ओं सहित मैं भी तुम्हारे तट पर निवास करूँगा।